Khatu Shyam ji Story : कलयुग के भगवान श्री खाटू श्याम कौन हैं? जानिए इनकी कहानी

Khatu Shyam ji Story

Khatu Shyam ji Story : दुनिया भर में लगातार खाटू श्याम के भक्तों की तादाद बढ़ रही है। लोगों की श्री खाटू श्याम में आस्था प्रबल हो रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में कौन हैं खाटू श्याम? कैसे हुए वो प्राकट्य अथवा कलयुग में क्यों हो रहा है उनका इतना अत्यधिक बोल बाला? अगर नहीं! तो आइए जानते हैं खाटू श्याम से जुड़ी रोचक कहानी के बारे में।

यह भी पढ़ें- Hanuman Ji Rahasya : हनुमान जी के अनसुने रहस्य, जिनको जानकर हो जाएंगे हैरान

जानिए कौन थे खाटू श्याम?

आपको बता दें कि खाटू, राजस्थान सीकर में स्थित एक कस्बे का नाम हैं। जहां खाटू श्याम जी विराजमान है। इसी वजह से इस जगह को खाटू श्याम नाम से भी जाना जाता हैं। हालांकि, कहानी की शुरुआत महाभारत काल से होती है। असल में खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है। जो महाबली भीम और हिडिंबा के पौते एवं घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक का शरीर अपने दादा जी की तरह ही विशालकाय था। साथ ही वह अति बलशाली थे।

प्रचलित मान्याता के अनुसार, बताया जाता है कि जब महाभारत का युद्ध आरंभ हो रहा था, तो बर्बरीक भी युद्ध देखना चाहते थे। इस वजह से वह कुरुक्षेत्र की ओर चले गए। वहां जाकर उन्होंने संकल्प लिया कि अंत में जो भी युद्ध हार रहा होगा, वो उसकी ही तरफ से युद्ध में हिस्सा लेंगे। हालांकि, जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो वह इससे परेशान हो गए क्योंकि उनको युद्ध का परिणाम पहले ही पता था। वह जानते थे युद्ध में जीत पांडवों की ही होगी, पर उन्हें ये भी पता था कि अगर बर्बरीक ने युद्ध में हिस्सा लिया तो फिर वह ही जीतेंगे।

जानिए फिर क्या हुआ?

इसके बाद भगवान कृष्ण ने एक युक्ति अपनाई। इसके तहत उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और वह बर्बरीक (Khatu Shyam ji Story) के पास जा पहुंचे। तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा- ”हे बलशाली पुरुष! आप कौन हैं और आप इतनी जल्दी में कहां जा रहे हैं?” इसके बाद बर्बरीक ने अपने विषय में बताया, मैं महाबली भीम का पौत्र बर्बरीक हूं। मैं कुरुक्षेत्र जा रहा हूं, मेरी इच्छा है कि मैं महाभारत का युद्ध देखू।

इस पर श्री कृष्ण ने कहा- ”आप जैसा बलवान सिर्फ युद्ध देखेगा, लड़ेगा नहीं?” इसके बाद बर्बरीक ने मुस्कुराकर बोला, ”मैं युद्ध में भाग भी लूगा लेकिन पहले मैं देखूंगा कि कौन हार रहा है। जो अंत में हार रहा होगा, मैं उसकी तरफ से युद्ध में हिस्सा लूंगा और युद्ध का परिणाम पलट दूंगा।” फिर श्री कृष्ण ने कहा- ”आपको अपने बल पर इतना गुरुर है! आप बलशाली जरूर लगते हैं लेकिन जहां भीष्म, कर्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम जैसे वीर मौजूद हों, वहां आप क्या कर पाएंगे? आपकी बातों पर मुझे यकीन नहीं है।” इस पर बर्बरीक ने उत्तर दिया और कहा- भूदेव! आप चाहें तो मेरे बल की परीक्षा भी ले सकते हैं।

क्या था कृष्ण जी का वर

ये सुनकर कृष्ण जी मुस्कुराए, क्योंकि उन्हें जिस क्षण का इंतज़ार था वो क्षण आ गया था। इसके बाद उन्होंने बर्बरीक (Khatu Shyam ji Story) से कहा- लेकिन अगर आप हार गए तो मैं जो मांगूंगा, आपको वहीं वर मुझे देना होगा। इस बात पर बर्बरीक जी मान गए। इसके बाद भगवान कृष्ण ने एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करा और कहा, ‘इस पेड़ के सारे पत्ते आपको एक ही बाण से भेदने होंगे, लेकिन अगर एक भी पत्ता बच जाता है तो आप हार जाएंगे।’

इसके बाद बर्बरीक ने निशाना लगया और अपने एक ही बाण से पेड़ पर लगे सारे पत्ते भेद कर दिए। ये देख वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कृष्ण जी से कहा, मैं जीत गया। इस पर कन्हैया जी मुस्कुराए और उन्होंने अपना पैर हटाते हुए बोला, शायद नहीं, क्योंकि उन्होंने पेड़ का एक पत्ता अपने एक पैर के नीचे दबा लिया था। इसलिए शर्त अनुसार, बर्बरीक जी हार गए। इसके बाद निराश होकर बर्बरीक बोले, भूदेव मांगिए, आप क्या मांगते हैं। कृष्ण जी ने उत्तर दिया- ‘आप मुझे अपना शीश काट कर दे दीजिए।’

क्यों बर्बरीक से प्रसन्न हुए कृष्ण जी

आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि बर्बरीक (Khatu Shyam ji Story) ने एक क्षण सोचे बिना, अपना शीश काट कर कन्हैया के चरणों में रख दिया। ये देख कन्हैया बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने वास्तविक रूप में आकर बर्बरीक जी को दर्शन दिए। साथ ही कहा- ”बर्बरीक! मैं तुम्हारे पराक्रम से बहुत खुश हूं। अतः मैं तुम्हें वर देता हूं कि कलयुग में लोग तुम्हें मेरे ही नाम से पूजेंगे। जो भी तुम्हारी शरण में आएगा और सच्चे दिल से तुमसे मन से कुछ भी मांगेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। इसके अलावा उन्होंने कहा- तुम्हारे ये शीश का दान सदैव याद रखा जाएगा। तो इसी वरदान के तहत कहा जाता है जो भी भक्त सच्चे भाव से श्याम बाबा से कुछ भी मांगता है, वो उसे जरूर मिलता हैं।

यह भी पढ़ें- Milarepa Story : कैलाश पर्वत के शिखर पर जब पहुंचे ये संत, जानिए फिर क्या हुआ …?

Exit mobile version