क्या है योग के सही मायने, जानिए विस्तार से

Importance of Yoga

Importance of Yoga

Importance of Yoga : मनुष्य का शरीर, भगवान द्वारा निर्मित एक रहस्यमयी रचना हैं। शरीर में तमाम अंगों के अलावा सात महत्त्वपूर्ण चक्र भी होते हैं। ये चक्र, हमारे शरीर के अंदर प्राण के उत्तरदायी होते हैं। ये चक्र हमारी आत्मा के प्राण होते हैं। इन चक्रों को अगर जागृत कर लिया जाए तो मनुष्य का जीवन ब्रहम से जुड़ जाता है। इनसे मनुष्य के आस-पास एक ऐसी सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है, जिसके बाद शरीर में किसी रोग, कष्ट व बीमारी के होने का खतरा नहीं रहता।

कुण्डलिनी योग

सात चक्रों को कुण्डलिनी योग, द्वारा जागृत किया जा सकता हैं। कुण्डलिनी, एक ऐसा अभ्यास है, जिससे मानव शरीर के सातों चक्र जाग जाते हैं। इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का भी संचार होता है।

प्राणायाम

रोजाना सुबह, प्राणायाम करना चाहिए। प्राणायाम, योग का ही एक अभिन्न अंग हैं। योग बहुत सारे अंगों से मिलकर बनता है। प्राणायम का अर्थ होता है प्राण अर्थात साँस, आयाम अर्थात नियंत्रण करना। जब हम हमारी साँसों पर लाभ के उचित उद्देश्य से नियंत्रण करते हैं, तो वह प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम, कई तरह के होते हैं। जैसे कि- भ्रामरी प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, शीतली प्राणायाम, सीत्कारी प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम तथा कपालभाति प्राणायाम।

मुद्रा

मनुष्य के हाथों की पाँचों उंगलियों में पंच तत्व पाए जाते हैं। सही तरह से उंगलियों द्वारा मुद्रा बनाकर, हम शरीर के पंच तत्वों की मात्रा को संतुलित कर सकते हैं। मुद्रा भी कई प्रकार की होती हैं। जैसे कि- पृथ्वी मुद्रा, अग्नि मुद्रा, वायुम मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, शून्य मुद्रा, प्यान मुद्रा, अपान मुद्रा और समान मुद्रा।

योग

प्राचीन वेद और ग्रंथों में मनुष्य को ईश्वर से जोड़ने के लिए योग को आधार माना गया हैं। इसलिए इसका अर्थ भी होता है, जुड़ना। योग के अपने आप में कई आयाम है। लेकिन लक्ष्य केवल एक है, ईश्वर अर्थात् इस सृष्टि से जुड़ना। इस सृष्टि से जुडने के लिए हम योग के जिस प्रकार का उपयोग करते हैं, वहीं योग हमारे जीवन का आधार बन जाता हैं। गौरतलब है कि योग का अर्थ केवल व्यायाम या योग आसन ही नहीं होता।

योग गुरु पतंजलि देवल्यास आदि योग गुरुओं के अनुसार, योग के कई प्रकार हैं। जैसे कि-

ये योग के मुख्य प्रकार है, जिसे अपने जीवन में अपनाकर हम एक बेहतर जीवन जी सकते हैं।

पुराने युग में रहने वाले लोग भी हमारी तरह मनुष्य ही थे। लेकिन उस युग और वर्तमान युग में यही फर्क है, कि उस युग के लोग प्रत्यक्ष रूप से इस सृष्टि के प्रति उत्तरदायी रहते थे। वह यम, नियम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, शम, दम तथा निदिध्यासन जैसे कई तरीके होते हैं, जो आपको अंदरूनी रूप से जागृत करते हैं और एक बेहतर जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं। वह व्यक्ति स्वंय को तथा खुद से जुड़े लोगों को जीवन जीने का सही मार्ग दिखाता है।

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