Ramcharitmanas : रामायण की ये 8 चौपाई से दूर होगी सभी समस्याएं, आज से ही शुरू करें पाठ

Ramcharitmanas Ayodhya Kand Chaupai

Ramcharitmanas Ayodhya Kand Chaupai : हर एक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके जीवन में सदैव सुख-समृद्धि बने रहे। कभी भी उसे धन की कमी नहीं हो, लेकिन इसके बावजूद भी कई बार घर-परिवार पर दरिद्रता व तंगहाली छा जाती है। हालांकि, इसके कई कारण हो सकते हैं। बहरहाल वास्तु शास्त्र में हर एक परेशानी के समाधान के उपायों के बारे में बताया गया हैं। कहा जाता है कि जिन घरों में गंदगी रहती है, लोग साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते है और जहां परिवार की स्त्री दुखी रहती है, वहां पर कभी भी मां लक्ष्मी का वास नहीं होता हैं। इसके अलावा ग्रह-नक्षत्रों को भी घर की दरिद्रता की बड़ी वजह माना जाता हैं।

प्रचलित मान्यात के अनुसार, कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति प्रतिदिन श्रीरामचरितमानस (Ramcharitmanas) के अयोध्या कांड की 8 चौपाइयों का पाठ करता है, उसके घर में कभी भी तंगहाली और दरिद्रता नहीं आती है। तो आइए जानते हैं उन 8 चौपाइयों के बारे में-

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परिवार में दरिद्रता दूर करने के लिए करें इन 8 चौपाइयों का पाठ

दोहा-

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।

चौपाई 1-

जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।

चौपाई 2-

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।

चौपाई 3-

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।

चौपाई 4-

मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।

दोहा-

सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।
आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।

चौपाई 5-

एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।
सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।

चौपाई 6-

नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।
वन तीनि काल जग माहीं। भूरिभाग दसरथ सम नाहीं।।

चौपाई 7-

मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिअ थोर सबु तासू।।
रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा।।

चौपाई 8-

श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।
नृप जुबराजु राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।

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