‘केवल नरेंद्र मोदी ही कर सकते थे शिकायत, क्योंकि…’ सजा को चुनौती देते हुए राहुल गांधी ने दी कई दलीलें

राहुल गांधी की दलीलें

‘मोदी सरनेम’ वाले मानहानि मामले में बीते दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कोर्ट से राहत मिल गई है। सोमवार को राहुल गांधी ने दोषी ठहराए जाने के मामले में सीजेएम कोर्ट के फैसले को सेशंस कोर्ट में चुनौती दी थी। राहुल को अदालत ने 13 अप्रैल तक जमानत दे दी। वहीं उनकी सजा पर रोक वाली याचिका पर 3 मई को सुनवाई होगी। दोषिसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए राहुल गांधी की ओर से कई दलीलें दी गई। इस दौरान उनकी ओर से कहा गया है कि केवल नरेंद्र मोदी ही शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

राहुल को मिली राहत

राहुल गांधी का प्रतिनिधित्व करने वाली कानूनी टीम में वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा, वकील किरीट पानवाला और तरन्नुम चीमा शामिल हैं। वे सत्र न्यायालय के समक्ष तर्क देते हैं कि टिप्पणी राजनीतिक प्रेरणा से की गई थी और यह कि शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं है। इस मामले में अब 13 अप्रैल को दोपहर तीन बजे होने वाली सुनवाई के लिए व्यक्तिगत रूप से सुनवाई में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है।

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‘मोदी सरनेम’ वाले मामले में जहां राहुल गांधी को गुरुवार 23 मार्च को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा की सूरत कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया और दो साल की कैद की सजा सुनाई गई, जो अप्रैल 2019 के दौरान राहुल गांधी की टिप्पणी मामले से संबंधित था। करोल में लोकसभा चुनाव की रैली की थी, जिसमें उन्होंने कहा था- “सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता हैं”। इसके बाद BJP विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का केस दायर किया था।

बाद में, लोकसभा में गांधी की सदस्यता भी वापस ले ली गई, क्योंकि 1951 के जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार, एक सांसद को संसद से अपनी सीट गंवानी पड़ती है, अगर उसे दोषी ठहराया जाता है और दो या उससे अधिक साल के लिए कारावास से दंडनीय अपराध के लिए सजा सुनाई जाती है।  गांधी को चुनाव में खड़े होने के लिए स्वत: ही अयोग्य घोषित कर दिया गया था और छह साल तक ऐसा करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया था।

‘चोकसी-अंबानी का भी लिया था नाम’

राहुल गांधी कानूनी टीम ने तर्क दिया कि पूर्णेश मोदी को शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं था क्योंकि केवल वे ही जो पीड़ित हैं वे भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत अपराधों के लिए ऐसा कर सकते हैं, जो मानहानि और इसकी सजा से निपटते हैं। यह सजा और सजा को चुनौती देने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सात आधारों में से एक था। राहुल गांधी की ओर से इस दौरान यह तर्क दिया गया है कि शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी मामले में दुखी नहीं है क्योंकि राजनीतिक बयान दिया गया था और मोदी उपनाम की जाति पर निर्देशित नहीं किया गया था। राहुल ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने छह लोगों का नाम लिया था। नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या, ललित मोदी और अनिल अंबानी पर उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार ने इन सभी लोगों को बेजा तरीके से फायदा पहुंचाया। इनमें से कई के नाम से साथ मोदी नहीं लगा है।

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‘जज को सोचना चाहिए था कि…’

इस दौरान ये भी कहा गया कि पूर्णेश मोदी की शिकायत 2019 के लोकसभा चुनावों की अगुवाई में राजनीतिक लाभ के लिए इसका इस्तेमाल करने के इरादे से जल्दबाजी में प्रस्तुत की गई थी। सजा को चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया कि इस मामले पर सजा सुनाने वाले को पहले सोचना चाहिए था कि उनका फैसला किस तरह का असर डाल सकता है। वो ये बात अच्छी तरह जानते थे कि मानहानि केस में दो साल की सजा सुनाने से उनकी लोकसभा सदस्यता चली जाएगी। जज को इस पर विचार करना था।

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