मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में जनता का साथ किसे मिल सकता है?

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पहले हिमाचल और फिर कर्नाटक.. चार महीने में दो राज्यों में BJP से सत्ता छिनने के बाद कांग्रेस का जोश इस वक्त काफी हाई है। इसके बाद से ही कांग्रेस इस इस तरह का राजनीतिक माहौल पूरे देश में बनाने की कोशिश कर रही है कि अब पूरे देश में भी मोदी के पक्ष में कोई लहर नहीं चल रही है। जबकि देखा जाये तो हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद बीजेपी को मिलने वाले वोट प्रतिशत में कोई कमी नहीं आई है।

मोदी की लोकप्रियता

इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मोदी की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। विशेषकर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के नेता मोदी का सीधे सीधे विरोध भी नहीं करते दिखते हैं। इससे भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दबे मन मोदी की लोकप्रियता को कांग्रेसी नेता भी कहीं न कहीं समझते हुए ही इस तरह का स्टैंड लेने को भी कई बार मजबूर होते हैं। चूकि कांग्रेस के नेता मोदी के मुकाबले राहुल गांधी के राजनीतिक समझ को कम भांपते हैं, इसलिए भी कई कांग्रेसी नेता राहुल गांधी और कांग्रेस के नेतृत्व को अस्वीकार करके स्वयं बीजेपी और मोदी के साथ जाते हुए देखे जा रहे हैं।

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कुछ राज्यों में विशेषकर मोदी का विरोध नहीं करके कुछ कांग्रेसी नेता कांग्रेस की सत्ता आने पर अपने आप को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं तो कुछ स्वयं मुख्यमंत्री बनाना भी चहते हैं। सूत्रों की मानें तो आगामी लोकसभा चुनाव के आते आते कांग्रेस के कुछ और दिग्गज नेता बीजेपी में जाकर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करने वाले हैं।

बीजेपी में सिंधिया

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का होते हुए इसी कारण देखा गया। क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में रहकर राहुल गांधी और कांग्रेस के पक्ष में जो भी बोल रहे थे तो इसीलिए कि वे पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद अपने आप को कांग्रेस की ओर से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर भी देख रहे थे। ऐसा नहीं हुआ तो फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राहुल गांधी के नेतृत्व को भी अस्वीकार कर दिया। जबकि ऐसा दिखता है कि मोदी के नेतृत्व में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने आप को काफी सही जगह भी महसूस कर रहे हैं।

सरकार की योजनाएं

दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान के साथ जाने और मध्य प्रदेश का फिर से उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार करने में भी कोई विशेष आपत्ति नहीं हुई। हालांकि इस बार विशेषकर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की बात करें तो शिवराज सिंह सरकार ने कई ऐसी योजनाओं की शुरुआत की है जिसे लोकलुभावन योजनाओं के रूप में तो जाना जा रहा लेकिन कहीं न कहीं इससे अधिकांश जनता को अन्य राज्यों के जनता की अपेक्षा विशेषकर ज्यादा लाभ तो निश्चित ही हो रही है। एक तरफ मध्यप्रदेश के किसानों को पूरे देश के किसानों की तरह प्रत्येक वर्ष 6 हजार रूपये तो मिल ही रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश की सरकार के तरफ से भी वहां के किसानों को प्रत्येक वर्ष 4 हजार रूपये दिये जा रहे हैं। जो कुल मिलाकर देश के अन्य राज्यों के किसानों को मिलने वाले किसान सम्मान निधि की अपेक्षा प्रत्येक वर्ष 6 हजार रुपये के साथ मध्य प्रदेश सरकार की ओर से मिलनेवाली अतिरिक्त 4 हजार बढ़कर 10 हजार रुपये हो जाती हैं।

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इस तरह से विशेषकर मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में भी मोदी की लोकप्रियता के साथ साथ शिवराज सिंह सरकार के जनकल्याणकारी योजनाओं में किसानों को मिलने वाले मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अलावां मुख्यमंत्री कन्या अभिभावक पेंशन योजना, आहार अनुदान योजना, मुख्यमंत्री लाडली लक्ष्मी योजना के साथ साथ अन्य कई योजनाओं की लोकप्रियता के साथ साथ विशेषकर मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता से मिलने वाले बीजेपी के फायदे को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है।

कहीं न कहीं कांग्रेस के नेता भी इस बात को भी भली भांति समझ रहे हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के नेता अब किसी भी तरह से मोदी की लोकप्रियता को कम करके बताने का भरपूर प्रयास करते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो मध्य प्रदेश की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किलें बीजेपी से ज्यादा खड़ी हुई दिख रही हैं। अन्य दलों में विशेषकर बहुजन समाज पार्टी के स्टैंड भी मध्य प्रदेश चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।

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