क्या आप अयोध्या का प्रसिद्ध मंदिर हनुमान गढ़ी के बारे में जानते है

Hanumanmandir blog image

अयोध्या की सरयू नदी के दाहिने तट पर ऊंचे टीले पर स्थित हनुमानगढ़ी सबसे प्राचीन मंदिर है। यहां तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यहां पर स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा केवल लगभग 6 इंच लंबी है, जो हमेशा फूलमालाओं से सुशोभित रहती है।

माना जाता है कि लंका विजय करने के बाद हनुमान यहां एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। इसे हनुमानजी का घर भी कहा जाता है। इस मंदिर परिसर के चारों कोनो में परिपत्र गढ़ हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बालक रूप में हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोदी में बालक रूप में लेटे है।

इस मंदिर के जीर्णोद्धार के पीछे एक कहानी है। सुल्तान मंसूर अली लखनऊ और फैजाबाद का प्रशासक था। तब एक बार सुल्तान का एकमात्र पुत्र बीमार पड़ा। वैद्य और डॉक्टरों ने जब हाथ टेक दिए, तब सुल्तान ने थक-हारकर आंजनेय के चरणों में अपना माथा रख दिया। उसने हनुमान से विनती की और तभी चमत्कार हुआ कि उसका पुत्र पूर्ण स्वस्थ हो गया। उसकी धड़कनें फिर से सामान्य हो गईं।तब सुल्तान ने खुश होकर अपनी आस्था और श्रद्धा को मूर्तरूप दिया- हनुमानगढ़ और इमली वन के माध्यम से। उसने इस जीर्ण-शीर्ण मंदिर को विराट रूप दिया और 52 बीघा भूमि हनुमानगढ़ी और इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई। 300 साल पूर्व संत अभयारामदास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण संपन्न हुआ। संत अभयारामदास निर्वाणी अखाड़ा के शिष्य थे।

क्या आप जानते है की राम जी का दर्शन करने से पहले उनके दर्शन क्यों करते है ?

हनुमान जी राम दरबार के द्वारपाल है , इसलिए राम दरबार में प्रवेश करने से पहले द्वारपाल के रूप में विराजमान श्री हनुमान जी महाराज से अनुमति लेनी पड़ती है।

जैसा की हनुमान चालीसा में लिखा है

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसा रे”

अर्थ : श्री रामचंद्रजी के द्वार के आप रखवाले हैं , जिसमें आपकी आज्ञा के बिना किसी को प्रवेश नहीं मिल सकता । अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है। (अर्थात श्रीराम-कृपा पाने के लिए आपको प्रसन्न करना आवश्यक है)।… इसीलिए तुलसीदासजी ने लिखा है ‘राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे’ याने संतो की सेवा किये बिना भगवान तक नहीं पहूँच सकते ।

Exit mobile version