सेक्स वर्कर से कथित रेप का मामला: मुंबई की एक अदालत ने चारों आरोपियों को किया बरी

mumbai court

मुंबई की एक अदालत ने एक सेक्स वर्कर से बलात्कार के चार आरोपियों को बरी कर दिया है। यौनकर्मी द्वारा 2016 में की गई शिकायत पर पीड़िता की कहानी के संदेह पर बलात्कार और अन्य आरोपों के लिए चारों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि केवल एक यौनकर्मी होने के नाते किसी को भी यौनकर्मी के खिलाफ जबरदस्ती संभोग करने का अधिकार नहीं है, लेकिन वर्तमान मामले में पीड़िता की कहानी पर संदेह होने के कारण अदालत ने चार आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले का फैसला 1 अप्रैल को आया और फैसला आने में 6 साल, 9 महीने, 17 दिन लगे।

पीड़िता का पक्ष

अभियोजन पक्ष (पीड़िता) की कहानी के अनुसार मई 2016 की रात करीब 1.30 बजे जब वह ऑटो की तलाश कर रही थी तो आरोपियों ने उसे जबरदस्ती ऑटो में बैठा लिया और एक कमरे में ले जाकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। जान से मारने की धमकी देकर अप्राकृतिक संबंध बनाया। चीख-पुकार सुनकर आसपास के लोग मौके पर आ गए तो आरोपी भाग गए। पुलिस ने पहुंचकर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की और उसी दिन आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार करने में सफल रही। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के धारा 223 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 342 (अपहरण), 266 (धमकाना), 506(ii) (आपराधिक धमकी), 376(डी) (सामूहिक बलात्कार) और 377 (अप्राकृतिक संभोग) को आकर्षित करने के लिए शारीरिक हमले का मामला दर्ज किया था।

यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट से BJP नेता प्रशांत उमराव को मिली बड़ी राहत, बिहारी मजदूरों पर हमले की झूठी खबर फैलाने का है मामला

आरोपियों ने अपने बचाव में दिया ये तर्क

जबकि आरोपी व्यक्तियों की ओर से बचाव में ये कहा गया था कि आरोपी एक सेक्स वर्कर था जिसे उन्होंने काम पर रखा था और फिर भुगतान से संबंधित विवाद सामने आने के बाद पीड़िता ने झूठी शिकायत दर्ज कराई। अपने बचाव में उन्होंने इस तथ्य पर भी भरोसा किया कि शिनाख्त के दौरान पीड़िता आरोपी व्यक्तियों की पहचान करने में सक्षम नहीं थी।

‘सेक्स वर्कर से नहीं है जबरदस्ती संबंध बनाने का अधिकार, लेकिन…’

कोर्ट ने मामले पर कड़ा रुख रखते हुए कहा कि महिला सेक्स वर्कर होते हुए भी उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाने का अधिकार किसी को नहीं है। हालांकि, वर्तमान मामले में अदालत ने जांच की कि क्या पीड़िता के बयान को स्वीकार किया जा सकता है या नहीं और पाया कि अभियुक्तों के कृत्यों और उनके द्वारा बल प्रयोग के बारे में विवरण देने वाला कोई अन्य बयान नहीं था। पीड़िता को लगी चोट या रक्तस्राव के संबंध में कोई चिकित्सा साक्ष्य उपलब्ध नहीं था, साथ ही अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि पहचान परेड के संबंध में कई विसंगतियां थीं।

इसलिए मुंबई कोर्ट ने पीड़िता की कहानी के संदेह पर चारों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हालांकि किसी को भी जबरदस्ती संभोग करने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि वह एक सेक्स वर्कर है।

Exit mobile version