कांग्रेस में अब पार्टी स्तर पर एक और मनमोहन की तैयारी

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80 साल के मल्लिकार्जन खड़गे क्या कांग्रेस की नैया पार करवायेंगे। यह सवाल इसलिए है क्योंकि कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है। चुनाव के बाद जो भी अध्यक्ष चुना जाएगा वह काम कांग्रेस हाई कमान यानी सोनिया गांधी के नेतृत्व में ही करेगा। अब सवाल यही है जब सभी कुछ हाई कमान के इशारे पर होना है तो यह चुनाव किस लिए है।

देश की राजनीति में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, लेकिन कांग्रेस दक्षिण भारत से होकर सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है। जी हां, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है। सबसे आगे मल्लिकार्जुन का नाम आगे चल रहा है। मल्लिकार्जन के 30 समर्थक हैं। कहा यह भी जा रहा है कि तमाम चतुर, उत्तर भारतीय नेताओं को छोड़कर अब कांग्रेस आलाकमान 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे पर दांव लगा रहा है।

उत्तर भारत में जहां से कांग्रेस को सर्वाधिक सीटें मिल सकती हैं, वहां का एक भी उम्मीदवार नहीं है। फिर सब कुछ यानी नामांकन, नामांकन वापसी, चुनाव आदि आलाकमान के इशारे पर ही होना है तो चुनाव करवा ही क्यों रहे हैं?

इसबीच सबसे ज्यादा शांत और स्थिर भाव में शशि थरूर हैं। वह शुरू से उम्मीदवार थे और अब तक बने हुए हैं। आलाकमान का अपना उम्मीदवार कई बार बदला। फिलहाल भरोसा मल्लिकार्जन पर जा टिका है। देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव में जीत किसे हासिल होती है। आपके बताते चले कि सबसे पहले कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत पर भरोसा जताया था।

इसके बाद नंबर आया मध्यप्रदेश के तेज-तर्रार नेता दिग्विजय सिंह का। वे लड़ने को आतुर भी थे, क्योंकि वे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। कमलनाथ के रहते अब वे इस पद पर फिर से आना भी नहीं चाहते। इसलिए अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने को राज़ी हो गए थे। सही मायने में दिग्विजय इस पद के अव्वल उम्मीदवार थे। लेकिन रातो-रात फिर फ़ैसला बदल गया।

अध्यक्ष पद का चुनाव क्यों?

कहा ये भी जा रहा है कि जब पार्टी के तमाम फैसले खुद कांग्रेस आलाकमान को ही लेने हैं तो फिर ग़ैर गांधी अध्यक्ष लाने का मतलब ही क्या? बहरहाल, कांग्रेस को अगर आगे ले जाने की बात थी तो उसके लिए कांग्रेस को किसी जमीनी नेता पर भरोसा करना चाहिए था। जमीनी नेताओं में अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह एक अच्छ फैसला हो सकते थे। इसकी वजह यह है कि यह दोनों नेता मैदानी नेता के रूप में अपनी अलग पहचान रखते हैं। फिलहाल उम्मीद यही है कि कांग्रेस आलाकमान का फैसला सही हो, और खड़गे ही वे व्यक्ति हों जो पार्टी में नई ऊर्जा का संचार कर पाएं।

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