चाणक्य नीति से लाएं अपने जीवन में बदलाव

Chanalya

# किसी भी कार्य को करने से पूर्व कुछ बातों को ध्यान रखना चाहिए की जो कार्य करने जा रहे हो वो कार्य करने योग्य है या नहीं, और यदि कार्य का परिणाम पता न हो तो सबसे पहले ये पता करे। किसी भी कार्य को करने से क्या होगा, क्या नहीं। साधारणंत: उस कार्य का प्रणाम क्या होगा।
उससे पूर्व यह जानना जरुरी है की क्या धर्म है और क्या अधर्म ? यहाँ यह बात समझना कितना जरुरी है। किसी के प्राण लेना, क्या धर्म है या अधर्म?
किसी के प्राण लेना अधर्म है या धर्म ऐसा हमारे लोकाचार और नीतिशास्त्र में ऐसा करना अधर्म नहीं मन गया है। यदि किसी ने अपराध किया हो या पाप तो उस व्यक्ति दंड देना ही उचित माना गया है। निर्दोष के साथ ऐसा करना अधर्म है।

# “सर्वज्ञता” मनुष्य किस प्रकार खुद को सर्वज्ञ बना सकता है। यानी दुनियादारी और राजनीति की बारीकियां को समझना। सर्वज्ञ के तात्पर्य है ऐसी बुद्धि का होना जिससे किसी भी परिस्तिथि में को भी निर्णय लेने की क्षमता होना ही सर्वज्ञता है। सरलता में कहे तो अपने माहौल आपके अनुकूल हो या प्रतिकूल उसके हिसाब से निर्णय लेना। यदि सब कुछ जान या समझ कर कोई भी निर्णय नहीं ले पाए तो सब कुछ व्यर्थ है।

# मुर्ख व्यक्ति को कितना भी ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं क्यूंकि होगा तो हानि ही सज्जन और बुद्धिमान लोगों को इनसे हानि ही होगी। जैसे ऐसा व्यक्ति जो आपके लिए या किसी क लिए भी उचित नहीं सोचता तो ऐसे व्यक्ति के साथ से आपको हानि ही होगा। दुखी व्यक्ति के साथ रहने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना होगा। ऐसी स्त्री जो पर पुरुष या चरित्रहिन् का पालन पोषण करने से भी बुद्धिमान या सज्जन व्यक्ति को हानि ही भोगना पड़ेगा। गरीबी से लाचार या रोग से पीड़ित और विषाद ग्रस्त व्यक्ति यदि ऐसे लोगों से किसी भी प्रकार क सम्बन्ध रखना बुद्धिमान मनुष्य के लिए हानि ही होती है। परन्तु यही यदि वास्तव में दुखी हो और अपनी परिस्तिथि से निकलना चाहता हो तो उसकी मदद आवस्य करे।

# यदि आप किसी नए स्थान या देश के प्रस्थान करने का प्रयोजन होता है तो अवश्य ही जाये। आपको किसी अन्य देश या स्थान पर जाने से आपको नयी सीख, नयी विद्या, नया रोजगार या नयी बात सीख सकें। अन्यथा आपके प्रयोजन के अनुसार इनमे से कोई भी गुण सिखने को न मिले तो ऐसे देश को या स्थान को तुरंत छोड़ दे। जैसे जिधर आपका कोई अपना न हो भाई-बंधू या आदर-सम्मान न हो, आजीविका का साधन न हो तो इससे उचित होगा की आप उस स्थान से दूसरे स्थान पर प्रस्थान कर ले या छोड़ दे।

# “धन का संचय” चाणक्य का कहना है की मनुष्य को अपने विपत्ति के परिस्तिथि के लिए धन का संचय करे। धनाढ्य व्यक्ति को लगता है की विप्पति उपके लिए नहीं है क्यूंकि उनके पास धन है। वो धन से विप्पति को नष्ट कर सकते है। जी, बिलकुल ऐसा नहीं है क्यूंकि लक्ष्मी चंचला होती है आज इसके पास तो कल उसके पास चली जाती है परन्तु धनी मनुष्य के संचित धन को भी नष्ट होते वक़्त नहीं लगता। धन को संचित अवस्य करें।

# “अपनों की पहचान” चाणक्य कहते है की विप्पति के समय ही अपने भाई-बंधुओ, मित्र, रिस्तेदार की पहचान की जा सकती है। इसीप्रकार धन के समाप्त होने के बाद पत्नी की पहचान होती है। इससे एहि पता चलता है की प्रेम ही धन का कारन था वास्तविक नहीं। उसी तरह नौकर की पहचान काम पर नियुक्त करने के बाद पता चलता है।

# “सच्चा मित्र” यदि हर परिस्तिथि में ऐसा व्यक्ति जो आपका साथ न चोदे वही आपका सच्चा मित्र है यदि आप गलत है तो आपकी गलती बताये और यदि आप मार्ग भटक रहे हो तो आपको मार्ग प्रशस्त करें, उसी व्यक्ति को सच्चे मित्र के श्रेणी में रखा गया है।
परिस्तिथियाँ कुछ तरीके से हो सकती है जैसे अकाल पड़ना, रोग से ग्रस्त होने के कारण मृत्यु सय्या पर पड़े होना, शत्रु द्वारा किसी मुसीबत को जनम देना, किसी मुकदमे में फास जाने में या किसी भीषण कारण के वजह से मर जाने के बड़ा शमशान घाट तक साथ देने वाला ही सच्चा मित्र मन जाता है।

# जो है उसी को ख़ुशी-ख़ुशी अपनाओ जैसे लालच से भरे होने की वजह से धन के पीछे हाथ पाओ नहीं मरना चाहिए। जो भी आपको मिल रहा है उसी में संतुष्ट होना आवश्यक होता है। क्यूंकि जो व्यक्ति आधी छोड़ कर पूरी तरफ भागता है वह आधी से भी हाथ धो बैठता है।

# सौंदर्य स्त्री से विवाह करने से पूर्व यह जान ले की उसका कुल क्या है क्यूंकि नीच कुल की स्त्री की संस्कार भी नीच ही होगी, यदि श्रेष्ठ कुल की कन्या कुरूप या सुन्दर क्यों न हो। विवाह उसी से ही करे। क्युकी नीच कुल की कन्या की बातचीत, सोचने, या उठने बैठने का स्तर भी निम्न ही होगा। भले ही वह कन्या कुरूप या सौंदर्य हीन हो , वो जो भी करेगी वो उससे अपने कुल का मान सम्मान का मान बढ़ाएगी ही। और नीच कुल की कन्या अपने कुल की प्रतिष्ठा बिगाड़ ही देगी।
इसीलिए अपने जैसे ही कुल की कन्या से विवाह करना चाहिए। यानी अपने सामान कुल में ही विवाह करना चाहिए।
कुल क्या है? कुल का अर्थ धन सम्पदा से नही बल्कि परिवार से है।

# मन से सोचे हुए कार्य को बोल के प्रकट नहीं करना चाहिए। लेकिन चिंतन कर के उसे भली प्रकार सोच विचार करना चाहिए।

 

Exit mobile version