भाजपा सांसद ने उठाई Juvenile Justice Act में संशोधन की मांग, इस एक्ट में क्या है खास

Juvenile Justice Act क्या होता है

Juvenile Justice Act क्या होता है

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में साल 2014 में हुए निर्भया गैंगरेप जैसी वीभत्य घटना के कारण किशोर अपराधियों के लिए Juvenile Justice Act 2015 लागू किया गया था। लेकिन इस समय इस एक्ट में संशोधन को लेकर कई बार विचार भी किया गया है। लेकिन उसके बाद भी संशोधन नहीं किया गया है। इसी मुद्दे को राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान भाजपा सांसद विवेक ठाकुर ने उठाते हुए कहा कि देश में किशोरों (18 वर्ष से कम) द्वारा किए जा रहे अपराधों के मद्देनजर किशोर न्याय अधिनियम 2015 में संशोधन करना बेहद ही जरूरी है। विवेक के मुताबिक कानून में संशोधन ना होने के कारण कई बड़ी वारदातों में शामिल होने के बाद उम्र का फायदा उठाकर बाल अपराधी छूट जा रहे हैं।

भाजपा सांसद ने उठाई संशोधन की मांग

विवेक ने निर्भया गैंगरेप का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस घटना के कारण किशोर न्याय अधिनियम 2015 को लाया गया था। और इसमें अपराध को 3 श्रेणियों में बांटा गया- मामूली, गंभीर एवं जघन्य। लेकिन उसके बाद भी बाल अपराधी मामले में फैंसले के बाद भी छोड़ दिया गया। इस एक्ट के मुताबिक 16 से 18 साल के किशोर अगर सख्त अपराध करते हैं, तो उन्हें वयस्क मानते हुए उन पर केस दर्ज कर कोर्ट में सुनवाई होती रही। लेकिन साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मूल कानून के सेक्शन-2 में इस तरह के बड़े अपराध में 7 साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान था, लेकिन किसी भी तरीके की न्यूनतम सजा का कोई प्रवाधान नहीं था। ऐसे अपराध को जघन्य अपराध की क्षेणी में नहीं रखा जा सकता। साल 2021 में केंद्र सरकार को कानून में संशोधन करना पड़ा। जिसका नतीजा यह निकला कि कई जघन्य मामलों में किशोर अपराधी बगैर सजा मिले ही छूट रहे हैं। भाजपा सांसद विवेक ने सदन में आग्रह किया कि जल्द से जल्द इस कानून में संशोधन करके 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों को जघन्य अपराध में कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए जो बेहद जरूरी भी है।

Juvenile Justice Act है क्या ?

यदि बच्चे द्वारा किसी गैर क़ानूनी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है, तो इस गैर क़ानूनी कार्य को बाल अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। बाल अपराध के लिए (Age Limit) आयु सीमा अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग निर्धारित की गई है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तहत 16 वर्ष तक की आयु के लड़कों और 18 वर्ष तक की आयु की लड़कियों के अपराध करने पर बाल अपराधी माना जाता है। कानूनी प्रक्रिया के तहत बाल अपराध 8 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया अपराध गैर कानूनी होगा, जिसे कानूनी प्रक्रिया के तहत बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित करते है। भारत में बाल अधिनियम के स्थान पर 1986 में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट लागू हुआ |

आखिर क्यों जरूरी है बिल में संशोधन

जुवेनाइल जस्टिस बिल की माने तो रेप और हत्या जैसे गंभीर मामलों में अपराधी 16 से 18 साल के आयु वर्ग की श्रेणी में आते हैं। निर्भया गैंग रेप का मामला सामने आने के बाद जब इस एक्ट को बनाया गया था तो उस समय यह देखने को मिला है कि जुवेनाइल जस्टिस कानून 2000 में कुछ प्रक्रिया और कार्यावाही के तहत खामियां भी पाई गई। वहीं राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के तहत जिन अपराधों में 16 से 18 साल की उम्र के अपराधियों की संख्या में काफी तेजी के साथ इजाफा देखने को मिला। एनसीआरबी रिकार्ड के मुताबिक साल 2003 से 2013 के बीच इस तरह के अपराधिक मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी देखने को मिली। इस समय 16 से 18 साल के अपराधियों की संख्या 54 % से बढ़कर 66 % तक हो चुकी है।

क्या है जुवेनाइल बिल में किया गया संशोधन

जुवेनाइल बिल में अभी तक किए संशोधन के तहत अगर किसी बाल अपराधी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला काफी लम्बे समय से चल रहा है। और इसका निस्तारण 6 महीने में भी नहीं हो पाया है, तो ऐसी परिस्थिति में मामले को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) के नियम के मुताबिक नाबालिग के खिलाफ किसी भी तरह का कोई भी आपराधिक सबूत रखने की बजाय उसे मिटा दिया जाएगा। इस नियम के पीछे का उद्देश्य यह है कि नाबालिग की नई जिंदगी में पिछले आपराधिक इतिहास का कोई अस्तित्व न रह जाए। साथ ही उसकी पुरानी गलतियों के कारण भविष्य में आगे कोई समस्या खड़ी ना हो पाए।

Exit mobile version