Anand Mohan: बिहार के बाहुबलियों में कैसे जुड़ा आनंद मोहन का नाम? जानिए इनकी पूरी कहानी

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Anand Mohan: बिहार की राजनीति कभी बाहुबलियों के प्रभाव से अछूती नहीं रही है। चाहे वो सूरजभान हो, चाहे वो शहाबुद्दीन हो, छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले अनंत सिंह हो या फिर सुनील पांडे। ऐसे ही एक बाहुबली JDU के पूर्व MP आनंद मोहन हैं।

बिहार के आनंद मोहन के बारे में कौन नहीं जानता। वह सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं और गोपालगंज के डीएम जी.कृष्णैया की हत्या के मामले में कई सालों तक जेल में सजा काट चुके हैं और हाल ही में  नीतीश सरकार द्वारा नियमों के बदलाव के बाद जेल से छूटे हैं। गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सिंह का बिहार में आज भी उतना ही दबदबा है जितना तब था जब उन्होंने राजनीति में एंट्री की थी। आपको बता दें कि बाहुबली आनंद मोहन ने 17 साल की उम्र में ही राजनीति की गलियों में अपने कदम रखे थे। 1974 में आनंद ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के दौरान अपनी जगह बिहार की सियासत में बनाई थी। वहीं इमरजेंसी के दौरान वह पहली बार 2 साल के लिए जेल भी गए थे। आनंद मोहन का नाम उन शख्सियतों में है जिनकी आवाज 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में सुनी गई थी।

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आनंद मोहन का राजनीतिक सफर

आनंद मोहन जेपी आंदोलन के माध्यम से बिहार की राजनीति में शामिल हुए, 1990 में जनता दल के टिकट पर सहरसा जिले की महिषी सीट से जीते। उस समय लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे। 1993 में, उन्होंने स्वर्णों के अधिकार के लिए लड़ने के लिए बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। लालू यादव से लड़कर आनंद मोहन राजनीति में प्रमुखता से उभरे।

लालू के कट्टर दुश्मन थे आनंद मोहन

जब बिहार की राजनीति में मजबूत और प्रभावशाली शख्सियतों की बात आती है, तो लोग तुरंत आनंद मोहन सिंह के बारे में सोचते हैं। राज्य की राजनीति की शुरुआत से ही बिहार में चुनाव जाति के नाम पर होते रहे हैं और लड़े जाते रहे हैं। 1990 के दशक के दौरान बिहार की राजनीति में ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था कि जातिगत संघर्ष सामने आ गया था और राजनेता अपनी-अपनी जातियों के लिए खुलकर बोलते देखे गए थे।

आपको बता दें कि चुनाव के समय जाति आधारित हत्याओं की खबरें आती रहती थीं। इस समय लालू यादव का दौर जोरों पर था। उस दौरान आनंद मोहन लालू के मुखर विरोधी बन गए थे। 1990 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। उसके खिलाफ हत्या, डकैती, अपहरण, रंगदारी और डराने-धमकाने समेत कई अपराध दर्ज हैं।

15 सालों से जेल की हवा खा रहे हैं आनंद मोहन

वह एक IAS अधिकारी की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद कई सालों तक सलाखों के पीछे रहे। आनंद मोहन को नीतीश सरकार द्वारा नियमों के संशोधन का फायदा मिला। नीतीश सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए किसी सरकारी अधिकारी की हत्या को भी साधारण मर्डर के जुर्म में शामिल कर दिया। इसके चलते ही उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो पाया था। अप्रैल महीने में ही आनंद मोहन की जेल से रिहाई हुई है।

आनंद मोहन पर हत्या का आरोप

आनंद मोहन को 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जो उस समय तेलंगाना के महबूबनगर के एक युवा आईएएस अधिकारी थे। वहीं 2007 में एक अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील पर, पटना उच्च न्यायालय ने एक साल बाद मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

क्या आप जानते हैं कि युवा आईएएस अधिकारी गोपालगंज जा रहे थे, जब उन्हें ‘गैंगस्टर’ और आनंद मोहन के सहयोगी छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के दौरान मुजफ्फरपुर के पास भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। आनंद मोहन पर कृष्णैया की लिंचिंग के लिए भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया गया था।

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