डॉ. अंबेडकर ने मरने से पहले बदला था धर्म, जानिए क्या थी इसके पीछे की वजह

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Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar : भारतीय संविधान के रचय‍िता, समाज सुधारक और एक महान नेता डॉक्‍टर भीमराव अंबेडकर को हमारे देश में बहुत मान-सम्मान दिया जाता है लेकिन उनके द्वारा दिए एक भाषण के कारण उनका विरोध किया गया था। उनपर 20 फीसदी से ज़्यादा आबादी को भड़काने के आरोप लगे थे। बता दें कि उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि अगर आप ताकत चाहते हैं, सत्ता और समानता चाहते हैं तो धर्म बदलिए। मैं हिंदू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरूंगा नहीं, वर्ष 1935 में अंबेडकर के इस वाक्य के साथ उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा कर दी थी।

साल 1940 में अंबेडकर ने अपनी किताब, द अनटचेबल्स में लिखा था कि भारत में जिन लोगों को अछूत कहा जाता है, वो मूल रूप से बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने वर्ष 1944 में मद्रास में दिए अपने एक भाषण में कहा कि बौद्ध धर्म सबसे ज़्यादा वैज्ञानिक और तर्क आधारित धर्म है। जिसके बाद बौद्ध धर्म के प्रति उनका विश्वास बढ़ता ही गया। संविधान सभा के प्रमुख बनने के बाद अंबेडकर ने ही बौद्ध धर्म से जुड़े चिह्न चुने थे।

बता दें कि अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को दीक्षाभूमि में बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। इस दिन अंबेडकर ने सामूहिक धर्म परिवर्तन का कार्यक्रम आयोजन किया और अपने अनुयायियों को भी 22 शपथ दिलवाई। जिसमें था कि वह बौद्ध धर्म अपनाने के बाद किसी हिंदू देवी-देवता की पूजा-अर्चना नहीं करेंगी और न ही उसमें विश्वास करेंगे। इसके अलावा समानता और नैतिकता को अपनाने का वचन भी दिलाया गया।

अंबेडकर के धर्म परिवर्तन को, बाद में दलित बौद्ध आंदोलन नाम दिया गया जिसमें कई लोगों ने उनका साथ दिया। हालांकि धर्म बदलने के लगभग दो माह बाद ही उनका निधन हो गया। जिसके बाद बौद्ध शैली से चौपाटी समुद्र तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।

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