Online Betting: भारत में सट्टेबाजी का कितना प्रभाव, इसके लिए क्या है कानून ? यहां है पूरा कच्चा-चिट्ठा

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Online Betting: सट्टेबाजी का क्रेज दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है, खासकर युवा वर्ग इससे काफी प्रभावित है। मैदान पर खेलते हो या ना हो पर फैंटसी क्रिकेट खेलना नहीं भुलते हैं। इसमें आयु की भी कोई सीमा नहीं है। 18 साल से कम उम्र के बच्चे भी टीम बनाकर ये ऑनलाइट सट्टा लगा रहे हैं। खेले भी क्यों न, कंपनियां बढचढ के प्रचार जो कर रहीं है। सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं, पैसों का ये खेल तीन पत्ती, लूडो और ऐसे ही बाकी दूसरे ऑनलाइन गेम्स में भी चल रहा है। ऐसे मे सरकार की भुमिका अहम हो जाती है। लेकिन सरकार ऐसे बच्चो के भविष्य को ताक पर रखकर सुसुप्ता अवस्था मे सोई नजर आती है। और तो और उन फैंटसी एप के दोहरे चरित्र को तो देखिए। खैर…..क्रिकेट में सट्टेबाजी भारत में बहुत लंबे समय से अस्तित्व में है। बीच-बीच मे इसपर ध्यान आकष्ठ करने की कोशिश हुई है लेकिन बहुत ही धीमी आवाज में, जिसका सकारात्मक असर भी बेहद कम रहा है। 

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करोड़पति बनने के लालच में बच्चे क्या न करते..

‘ये मैं कर लेता हूं, आप तब तक टीम बनाइए… सेकेंड प्राइज एक करोड़ तो फर्स्ट प्राइज क्या होगा?.’ ऐसे तमाम विज्ञापन आप हर दूसरे मिनट में टीवी पर देखते हैं और उसके बाद करोड़पति बनने का सपना देखने लगते हैं। आपके चहेते स्टार इन विज्ञापनों में नजर आते हैं और टीम बनाकर पलक झपकते ही अपनी किस्मत बदलने की बात करते हैं। ऐसे फेंटेसी ऐप्स की संख्या रोजाना लगातार बढ़ती जा रही है और पिछले कुछ सालों में इनकी बाढ़ आ चुकी है। एक दिन में करोड़ों लोग इन ऐप्स पर टीम बनाते हैं और करोड़पति बनने के लालच में आकर पैसे लगाते हैं। अब इन गेम्स पर नकेल कसने की बात कही जा रही है। सरकार ने कहा है कि इन ऑनलाइन गेम्स की जांच की जाएगी।

हाल ही मे आईपीएल का 16वां सीजन खेला गया। हर बार की तरह इस बार भी कुछ ही घंटों में करोड़पति बनने का सपना दिखाने वाले इन ऑनलाइन फेंटेसी गेम्स का बहार दिखा। इसमे कईयों का चुना लगा होगा और कुछ को फायदा हुआ होगा। हालांकि रोजाना करोड़ों लोग अलग-अलग ऐप पर अपनी टीम बनाते हैं और आसान तरीके से पैसा कमाने की कोशिश करते हैं।

Betting Apps In India, Photo: Social media

बड़े-बड़े स्टार करते हैं विज्ञापन

फेंटेसी ऐप्स में हर साल स्टार्स की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। ये इसलिए भी है कि इसका बिजनेस काफी बड़ा है। यहां तक कि इन ऐप्स के विज्ञापन में बॉलीवुड से लेकर खेल जगत के वो सितारे शामिल हैं, जिनकी फीस करोड़ों में होती है। हालांकि आखिर में इन तमाम ऐप्स में तेजी से जो डिस्क्लेमर पढ़ा जाता है, उसी को लोगों को समझने की जरूरत है। इसमें कहा जाता है- “इस खेल में आदत लगना या आर्थिक जोखिम संभव है, जिम्मेदारी से खेलें।” पैसे गंवाने के खतरे की जानकारी देकर ये ऐप्स आसानी से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, ठीक उसी तरह जैसे सेहत के लिए खतरनाक सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है।

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कॉन्टेस्ट और अरबों रुपए का बिजनेस

आइए समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे सिर्फ एक ही मैच में करोड़ों-अरबों रुपये लगाए जाते हैं और इसका कितना फीसदी ऐप्स को मिलता है। एक बड़े फेंटेसी क्रिकेट ऐप में अलग-अलग कॉन्टेस्ट होते हैं, जिनमें सबसे बड़ा प्राइस 2 करोड़ रुपये का होता है, यानी अगर आपका पहला रैंक आता है तो दो करोड़ देने का दावा किया जाता है। इसे आप 49 रुपये में लगा सकते हैं। 49 रुपये के इस कॉन्टेस्ट में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग खेल सकते हैं। अब अगर इसका हिसाब लगाएं तो ये कुल करीब 74 करोड़ रुपये होते हैं। ये फेंटेसी ऐप दावा करता है कि इस कॉन्टेस्ट में 66 फीसदी लोगों को पैसा मिल जाएगा। यानी 56 करोड़ रुपये का प्राइज पूल है। विनिंग प्राइस पर सरकार को भी टैक्स जाता है।

अब आपको बाकी कॉन्टेस्ट्स की जानकारी देते हैं। दो करोड़ रुपये के बाद 1 करोड़, 22 लाख, 15 लाख, 8 लाख, 4 लाख और 1 लाख से लेकर 10 हजार रुपये तक के कॉन्टेस्ट एक ही ऐप में होते हैं। जितना महंगा कॉन्टेस्ट होगा, उतने ही कम उसमें लोग होंगे। ऐसे भी कॉन्टेस्ट हैं, जिसमें सिर्फ दो लोग खेलते हैं। जिसकी टीम अच्छा खेलेगी, वो जीतेगा। ऐसे करीब 30 से ज्यादा कॉन्टेस्ट एक ही ऐप में होते हैं। अगर हिसाब लगाया जाए तो ये कई अरबों में पहुंचता है।

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कानून मे क्या है प्रावधान ? सरकार का क्या है मत ?

  1. कई लीगल एक्सपर्ट भी मानते है कि ‘लीगल सट्टे’ की आड़ मे करोड़ों-अरबों का खेल चल रहा है। कंपनियां आसानी से इन ऐप्स के जरिए पैसा बना रही हैं। कई रिपोर्टस के मुताबिक ये जितने भी ऑनलाइन बेटिंग ऐप्स हैं, वो सभी गैरकानूनी हैं। ये किसी तरह पुराने कानून के लूपहोल्स का फायदा उठाकर करोड़ों-अरबों का बिजनेस कर रहे हैं। अब सवाल ये है कि ऑनलाइन सट्टे को लेकर देश में क्या कानून है। दरअसल मौजूदा जो कानून हैं, उनमें कई तरह के विरोधाभास नजर आते हैं। पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 के मुताबिक सट्टेबाजी एक अपराध है। इसके अलावा राज्यों ने भी इसे रोकने के लिए अलग-अलग कानून बनाए हैं। हालांकि ऑनलाइन गेमिंग को लेकर कोई भी स्पष्ट कानून नहीं है।
  2. ऐसा नही है कि सरकार इसपर कानून बनाना नहीं चाहती। सरकार की तरफ से जरूरी शुरुआत की गई है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकार की तरफ से पिछले साल संसद में ऑनलाइन गेमिंग रेगुलेशन बिल पेश किया गया था, जिसमें फेंटेसी स्पोर्ट्स, ऑनलाइन गेम्स, आदि को रेगुलेट करने की बात कही गई थी।
  3. इसके अलावा हाल ही में सरकार की तरफ से ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के लिए नए नियम बनाए गए थे। जिनके मुताबिक कंपनियों के लिए सेल्फ रेगुलेटरी सिस्टम बनाना जरूरी होगा। इसके अलावा भारत में उनके परमानेंट एड्रेस का वेरिफिकेशन होना भी जरूरी है। साथ ही यूजर्स के सभी ट्रांजेक्शन की जानकारी भी देनी होगी। हालांकि जुर्माने या किसी तरह की सजा का कोई जिक्र नहीं है, जिससे नियम काफी लचर नजर आते हैं।

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सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) का गठन

सरकार ने इसके लिए कई सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) भी बनाए है जिससे की ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स पर नियंत्रण पाया जा सके। सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) की तरफ से इन ऑनलाइन गेम्स की जांच की जाएगी। जांच के बाद जो भी ऑनलाइन गेम नियमों का पालन करेगा, उसी को जारी रखा जा सकता है। हालांकि कईयों का मानना है कि इससे सीधे ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को ही फायदा होगा। क्योंकि उन्हें इसके जरिए राज्यों में खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी। ये ऐप किसी भी राज्य में एसआरओ से क्लियरेंस लेकर काम कर सकते हैं। आपको बता दें कि इस पूरे मसले पर राज्यों से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा परामर्श नहीं किया गया है। इन ऐप्स को एक तरह की इम्यूनिटी दे दी गई है, कि जो लोग राज्यों में रजिस्टर करेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी।

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सरकार की एडवाइजरी क्या कहती है?

सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग को लेकर हाल ही में एक एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि सेल्फ रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (SRO) की तरफ से इन ऑनलाइन गेम्स की जांच की जाएगी। जांच के बाद जो भी ऑनलाइन गेम नियमों का पालन करेगा, उसी को जारी रखा जा सकता है। बाकी गेम्स पर गाज गिर सकती है। सरकार की तरफ से जारी एडवाइजरी कुछ ऐसी है-

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सिर्फ एडवाइजरी जारी करने से नहीं होगा कुछ

इसके लिए सख्त नियम बनने जरूरी हैं। सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे, पिछले एक साल में सरकार की तरफ से ये तीसरी एडवाइजरी आई है। जब तक कोई एक्शन नहीं होगा तब तक ऐसी एडवाइजरी का कोई फायदा नहीं है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इन ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को लेकर सख्ती दिखाई है और इन्हें पूरी तरह से बैन करने का फैसला किया है। हाल ही में तमिलनाडु ने ऐसे तमाम ऑनलाइन गेम्स पर बैन लगा दिया है, इसके लिए एक कानून पास किया गया है। जिसके तहत 3 साल की जेल और 10 लाख जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स को लेकर कड़े नियम बनाए गए हैं।

 

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