दिन में खर्राटे लेने से इंसान हो सकता है अंधा, स्टडी में हुआ खुलासा

Snoring during a day is dangerous

Snoring during a day is dangerous

Snoring during a day is dangerous : रात में 6-8 घंटे की नींद लेने की सलाह सभी डॉक्टर देते है। दिनभर ज्यादा तनाव की वजह से कुछ लोगों को रात में खर्राटे भी आते है। हालांकि कुछ लोगों को दिन में भी सोने की आदत होती है और वो दिन में भी भरपूर नींद लेते है। लेकिन हाल ही में शोध में खुलासा हुआ है कि दिन में सोने और खर्राटे भरने से आंखों पर बहुत बुरा असर पड़ता है और स्थिति ज्‍यादा गंभीर होने पर अंधेपन होने की भी नौबत आ सकती है। एक्‍सपर्ट्स का मानना है कि अच्‍छी व भरपूर नींद नहीं लेने से मनुष्य की क्षमता सीखने में,  निर्णय लेने में, स्वभाव, व्‍यवहार और याद्दाश्‍त पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

 

हमेशा के लिए हो सकते है अंधे

ब्‍लूमबर्ग ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि, दिन में रोजाना व लम्बे समय तक खर्राटे भरने की समस्या से ग्लूकोमा यानी काला मोतियाबिंद होने का जोखिम बढ़ जाता है। रिसर्च में ये भी पाया गया है कि अगर ग्लूकोमा की वजह से एक बार आंखों की रोशनी चली जाती है तो वो दोबारा कभी नहीं लौटती है। ग्‍लूकोमेा की बीमारी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। धूम्रपान करने वाले लोगों में इस बीमारी के होने की आशंका बहुत जल्दी होती है। ग्लूकोमा, ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करती है, जो दिमाग को आँख से जोड़ने का काम करती है। इससे आंखों की संवेदनशील कोशिकाओं का क्षरण भी होता है और सही समय पर इसका इलाज नहीं कराने पर हमेशा के लिए आंखों की रोशनी चली जाती है।

 

11 वर्षों तक चली रिसर्च

ब्रिटेन के बायोबैंक ने ये सर्च स्‍टडी की है। जिसमें 40 से 69 उम्र के 4 लाख से भी अधिक लोगों के डेटा का आकलन और विश्‍लेषण किया गया है। ये स्‍टडी 2010 से 2021 वर्ष के बीच की गई, जिसमें लोगों से उनकी नींद की आदतों के बारे में पूछा गया और उसका आकलन किया गया, इससे पता चला कि स्‍टडी के दौरान 8,690 लोगों में ग्लूकोमा की बीमारी है। रिसर्च से पता चला कि भरपूर नींद लेने वाले लोगों की तुलना में दिन में नींद व खर्राटे लेने वाले लोगों में ग्लूकोमा का खतरा 11 फीसदी बढ़ा है। इसके अलावा अनिद्रा व कुछ देर की छोटी नींद एवं लंबी नींद लेने वाले लोगों में 13 फीसदी तक का खतरा बढ़ जाता है। स्‍टडी में इस बात की भी आशंका जताई गई है कि दुनियाभर में वर्ष 2040 तक 11.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हो सकते हैंं।

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