कोहरे ने बदली रेगिस्तानी देशों के लोगों की जिंदगी, जानिए कैसे

Water make from Frog

Water make from Frog

Water make from Frog : एक तरफ जहां लोग कोहरे से परेशान है तो वहीं कुछ लोगों इसका ही इस्तेमाल कर रहें है। पहाड़ी इलाकों में हो रहीं बर्फबारी की वजह से मैदानी इलाकों में ठंड लगातार बढ़ती जा रहीं है। ठंड के साथ-साथ सुबह-शाम कोहरा भी बढ़ने लगा है। भारत में आमतौर पर कोहरे का प्रोडक्टिव उपयोग नहीं होता है। लेकिन अब कई देश कोहरे का भी फायदा उठा रहे हैं। खासतौर पर सूखाग्रस्त देशों (Desert) में कोहरे का इस्तेमाल पानी बनाने और अन्य कई चीजों में किया जा रहा है।

लम्बे समय से कर रहें है इस्तेमाल

सहारा मरुस्थल (Sahara Desert) के आसपास फैले देशों में गर्मियों के दौरान पानी का भयंकर संकट मंडराने लगता है। इसलिए इस समस्या से निजात पाने के लिए वहां के लोगों ने कोहरा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया हैं। हालांकि मोरक्को, में एक खास तकनीक से बड़े-बड़े जाल बनाए गाए है, जो कोहरे की बूंदों को जमा करने के साथ-साथ उससे पानी बनाते हैं।

बता दें कि इस तकनीक को फॉग कैचिंग (Fog Catching) के नाम से जाना जाता हैं। पानी की कमी से छुटकारा पाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। घाना, मोरक्को, कैलीफोर्निया, बेला विस्टा और पेरू जैसी जगहों पर तो इसका इस्तेमाल बहुत लम्बे समय से किया जा रहा हैं। वर्ष 2006 से बेला विस्टा (Bella Vista) में तो फॉग कैचर को उपयोग किया जा रहा है।

कई महीनों तक हुई थी स्टडी

फॉग कैचिंग (Fog Catching) की इस तकनीक का सबसे पहले इस्तेमाल वर्ष 1969 में किया गया था। दक्षिण अफ्रीका में सबसे पहले इस पर स्टडी की गई थी। 14 महीने की लम्बी स्टडी के बाद, उस समय कोहरे से रोजाना 11 लीटर पानी बनाया जाता था। बता दें कि कोहरे के पर-क्यूबिक-मीटर में करीब 0.5 ग्राम पानी होता हैं। इस तकनीक में धातु के बने जाल में कोहरे को पकड़ा जाता है और नीचे की और उसे जमा किया जाता है। इसके बाद उस पानी की प्रोसेसिंग की जाती है ताकि वो शुद्ध हो सकें।

सामाजिक संस्था ने किया आविष्कार

हालांकि समय के साथ इस तकनीक (Fog Catching) में कई बदलाव भी किए गए है। कई देशों में अब इसे क्लाउड-फिशर (Cloud Fisher) के नाम से जाना जाता हैं। फॉगक्वेस्ट नामक कनाडा की एक सामाजिक संस्था ने अब इस नई तकनीक को बनाया है। इस संस्था का उद्देश्य है कि इस तकनीक (Cloud Fisher) को अफ्रीकी देशों की उन जगहों तक पहुंचाया जाए, जहां पानी की भीषण कमी है।

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