अर्जुन तो बहाना था, गीता सार तो हनुमान जी को सुनाना था

Hanumanji-In-Mahabharat (1)

पौराणिक मान्यता है कि पवनपुत्र हनुमान जी अजर-अमर हैं। हनुमान जी पृथ्वी पर ही वास करते हैं। बताते हैं कि जब हनुमान जी लंका युद्ध के समय अपने प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए त्रेतायुग में उपस्थित थे। उस समय जब श्रीराम ने जल समाधि ली, तो हनुमान जी को पृथ्वी पर ही रुकने का आदेश दिया था। तबसे माना माना जाता है कि हनुमान जी का पृथ्वी पर ही वास है। लेकिन जब द्वापर युग में हनुमान जी को पता लगा कि उनके प्रभु श्रीराम, श्री कृष्ण अवतार में दोबारा पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए।

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा के अनुरूप बजरंगबली अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान थे। इससे जुड़ा एक प्रसंग आनंद रामायण में मिलता है।

एक बार हनुमान जी और अर्जुन की मुलाकात रामेश्वरम में हुई। इस दौरान दोनों के बीच लंका युद्ध पर चर्चा हुई। उस समय अर्जुन खुद को दुनिया का सबसे शक्तिशाली धनुर्धर मानते थे। अर्जुन अपने घमंड में हनुमान जी से कहता है कि मैं आपके समय होता तो पत्थर का रामसेतु बनवाने के बजाय अकेला ही अपने धनुष से मज़बूत सेतु बना देता। मगर श्री राम ने स्वयं भगवान होने के बाद ऐसा क्यों नहीं किया?

अर्जुन की बात सुनकर हनुमान जी ने जवाब देते हैं कि वहां बाणों का सेतु कोई काम नहीं कर सकता था। अगर उस समय कोई पुल बन भी जाता को हमारे एक ही वानर के चढ़ने पर बाणों का सेतु टूट हो जाता। जिस पर अर्जनु ने पटलकर जवाब दिया कि मैं अभी आपके समक्ष सरोवर में अपने बाणों से सेतु बनाऊंगा। जिस पर अगर आप चल पाएंगे और वो टूटेगा भी नही और अगर ऐसा नहीं हो पाया यानि सेतु टूट गया तो मैं आपके सामने अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा और अगर नहीं टूटा तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा। उस समय बजरंगबली सामान्य रूप में थे। अभियान में चूर अर्जुन ने अपने बाणों से तालाब पर एक सेतु बना दिया और हनुमान जी को चुनौती दी। अर्जुन के बनाए सेतु को देखकर हनुमान जी ने उनके सामने एक शर्त रखी, अगर सेतु उनका वजन सहन कर लेगा, तो वे अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे और यदि यह टूट गया तो तुमको अग्नि में प्रवेश करना होगा। अर्जुन ने शर्त स्वीकार कर ली।

हनुमान जी ने विशाल रुप धारण किया और जैसे ही पहला पग उस सेतु पर रखा। वह सेतु डगमगाने लगा। दूसरा पैर रखते हुए सेतु चरमराने लगा। उस पुल की हालात देखकर अर्जुन का सिर घमंड से नीचे हो गया।

श्रीकृष्ण ने कहा- हे हनुमान! आपका तीसरा पग सेतु पर पड़ा, उस समय मैं कछुआ बनकर सेतु के नीचे लेटा हुआ था। आपकी शक्ति से आपके पैर रखते ही मेरे कछुआ रूप से रक्त निकल गया। यह सेतु टूट तो पहले ही पग में जाता अगर मैं कछुए के रूप में इसका भार उठाए न खड़ा होता। जिसके बाद हनुमान जी क्षमा मांगी और कहा कि मेरा ये अपराध कैसे दूर होगा।

आग जलते ही अर्जुन उसमें प्रवेश करने वाले थे, तभी हनुमान जी ने श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान किया और अर्जुन को बचने का आग्रह किया। भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण रूप में प्रकट हुए और उन्होंने अर्जुन को ऐसा करने से रोक दिया। ब्राह्मण रूपी भगवान श्रीकृष्ण ने दोबारा अर्जुन को पुल बनाने को कहा और हनुमान जी को उनके सामने उसपे चलने को कहा।

हनुमान जी ने बिना कोई विचार किए पुनः चुनौती स्वीकार कर ली। अर्जुन ने सेतु बनाया, जिस पर जैसे ही हनुमान जी ने सेतु पर पहला पग रखा तो सेतु डगमगाने लगा, दूसरा पग रखने पर चरमराया और तीसरा पग रखने से सरोवर के जल में खून ही खून हो गया। इसके बाद हनुमानजी सेतु से नीचे उतर आए और अर्जुन से कहा कि अग्नि तैयार करो। अग्नि जलते ही हनुमान जी उसमें प्रवेश करने वाले ​थे, तभी भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. तब भगवान कृष्ण ने बताया कि आपके पहले ही पग के रखते यह सेतु टूट गया होता, अगर मैं कछुआ बनकर अपनी पीठ पर आपका भार नहीं उठाता। यह सुनकर हनुमान जी दुखी हो गए और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। उन्होंने कहा कि वे अपराधी हैं, उनके कारण उनके प्रभु को दुख पहुंचा है। इस पर श्रीकृष्ण बोले कि यह सब उनकी ही इच्छा से हुआ है। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि आप महाभारत युद्ध में अर्जुन की रथ पर लगी ध्वजा पर विराजमान रहें। जब महाभारत का युद्ध हुआ तो अर्जुन की रथ पर हनुमान जी शिखर पर लगे ध्वज पर विराजमान हो गए।

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